भारत
में वैदिक काल से ही गाय का महत्व माना जाता है। आरंभ में आदान प्रदान एवं विनिमय
आदि के माध्यम के रूप में गाय उपयोग होता था और मनुष्य की समृद्धि की गणना उसकी
गोसंख्या से की जाती थी। हिन्दू धार्मिक दृष्टि से भी गाय पवित्र मानी जाती रही है
तथा उसकी हत्या महापातक पापों में की जाती है।
गाय हिंदु धर्म में
पवित्र और पूजनीय मानी गई है। शास्त्रों के अनुसार गौसेवा के पुण्य का प्रभाव कई
जन्मों तक बना रहता है। इसीलिए गाय की सेवा करने की बात कही जाती है।
पुराने समय से ही
गौसेवा को धर्म के साथ ही जोड़ा गया है। गौसेवा भी धर्म का ही अंग है। गाय को
हमारी माता बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि गाय में हमारे सभी देवी-देवता निवास
करते हैं। इसी वजह से मात्र गाय की सेवा से ही भगवान प्रसन्न हो जाते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण के
साथ ही गौमाता की भी पूजा की जाती है। भागवत में श्रीकृष्ण ने भी इंद्र पूजा बंद
करवाकर गौमाता की पूजा प्रारंभ करवाई है। इसी बात से स्पष्ट होता है कि गाय की
सेवा कितना पुण्य का अर्जित करवाती है। गाय के धार्मिक महत्व को ध्यान में रखते
हुए कई घरों में यह परंपरा होती है कि जब भी खाना बनता है पहली रोटी गाय को खिलाई
जाती है। यह पुण्य कर्म बिल्कुल वैसा ही जैसे भगवान को भोग लगाना। गाय को पहली
रोटी खिला देने से सभी देवी-देवताओं को भोग लग जाता है।
सभी जीवों के भोजन
का ध्यान रखना भी हमारा ही कर्तव्य बताया गया है। इसी वजह से यह परंपरा शुरू की गई
है। पुराने समय में गाय को घास खिलाई जाती थी लेकिन आज परिस्थितियां बदल चुकी है।
जंगलों कटाई करके वहां हमारे रहने के लिए शहर बसा दिए गए हैं। जिससे गौमाता के लिए
घास आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाती है और आम आदमी के लिए गाय के लिए हरी घास लेकर
आना काफी मुश्किल कार्य हो गया है। इसी कारण के चलते गाय को रोटी खिलाई जाने लगी
है।
दान के संदर्भ में
गो दान के दो अर्थ है पहला गाय दान करना और दूसरा गो यानी केशों का दान करना।
दोनों ही हिंदू समुदाय में मान्य हैं। गो यानी गाय को हिंदुओं का सबसे प्रिय पशु
माना गया है। यज्ञ में उपयोग किए जाने वाले पदार्थ घी, दूध, दही आदि इसी से
प्राप्त होते है। यही कारण है कि गाय में विभिन्न देवताओं का वास माना गया
है।ऋगवेद की दान स्थिति में गायों के बड़े समूहों का उल्लेख मिलता है। यज्ञ के बाद
या किसी विशेष अवसर पर दान में पुरोहितो को गाय भेंट किए जाने की भी विभिन्न धर्म
ग्रंथों में कथाएं मिलती है।
वैदिककालीन भारतीयों के बीच संपन्नता गो धन से भी
आंकी जाती थी। जब राजा अपने राज्य के विस्तार के लिए अन्य राजाओं पर आक्रमण करते
तो लूट में गो धन भी प्रमुख रूप से शामिल
होता था। महाभारत में कौरवों द्वारा राजा
विराट पर आक्रमण में गो धन ही प्रमुख रूप से हथियाया गया था। इन सभी संदर्भों में
गो का दान महत्वपूर्ण था जो आज भी कायम है। गो दान धार्मिक कामों के आलावा विवाह व
श्राद्ध आदि में भी किए जाने का विधान है।
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