Monday, 28 December 2015

हिंदुस्तान

1857 से 1947 तक हिंदुस्तान के कई टुकड़े हुए और इस तरह बन गए सात नए देश। 1947 में बना पाकिस्तान भारतवर्ष का पिछले 2500 सालों में एक तरह से 24वां विभाजन था।  बता रहा है अखंड भारत की पूरी कहानी। आज तक किसी भी इतिहास की पुस्तक में इस बात का उल्लेख नहीं मिलता की पिछले 2500 सालों में हिंदुस्तान पर जो अटैक हुए उनमें किसी भी आक्रमणकारी ने अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण किया हो। पाकिस्तान व बांग्लादेश निर्माण का इतिहास सभी जानते हैं। पर बाकी देशों के इतिहास की चर्चा नहीं होती। हकीकत में अंखड भारत की सीमाएं विश्व के बहुत बड़े भू-भाग तक फैली हुई थीं।

ये थीं अखंड भारत की सीमाएं
इतिहास की किताबों में हिंदुस्तान की सीमाओं का उत्तर में हिमालय व दक्षिण में हिंद महासागर का वर्णन है, लेकिन पूर्व व पश्चिम की जानकारी नहीं है। कैलाश मानसरोवर‘ से पूर्व की ओर जाएं तो वर्तमान का इंडोनेशिया और पश्चिम की ओर जाएं तो वर्तमान में ईरान देश या आर्यान प्रदेश हिमालय के अंतिम छोर पर हैं।
एटलस के अनुसार जब हम श्रीलंका या कन्याकुमारी से पूर्व व पश्चिम की ओर देखेंगे तो हिंद महासागर इंडोनेशिया व आर्यान (ईरान) तक ही है। इन मिलन बिंदुओं के बाद ही दोनों ओर महासागर का नाम बदलता है। इस प्रकार से हिमालय, हिंद महासागर, आर्यान (ईरान) व इंडोनेशिया के बीच का पूरे भू-भाग को आर्यावर्त अथवा भारतवर्ष या हिंदुस्तान कहा जाता है।
 
अब तक 24 विभाजन
राइट विंग इतिहासकारों के मुताबिक सन 1947 में भारत-पाक बंटवारे के रूप में यह भारतवर्ष का पिछले 2500 सालों में 24वां विभाजन है। जबकि अंग्रेजों द्वारा 1857 से 1947 तक उनके द्वारा किया गया भारत का 7वां विभाजन है। 1857 में भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किमी था। वर्तमान भारत का क्षेत्रफल 33 लाख वर्ग किमी है। पड़ोसी 9 देशों का क्षेत्रफल 50 लाख वर्ग किमी बनता है।
 
क्या थी अखंड भारत की स्थिति
वर्ष1800 से पहले दुनिया के देशों की सूची में वर्तमान भारत के चारों ओर जो आज देश माने जाते हैं उस समय ये देश थे ही नहीं। यहां राजाओं का शासन था। मान्यताएं व परंपराएं बाकी भारत जैसी ही हैं। खान-पान, भाषा-बोली, वेशभूषा, संगीत-नृत्य, पूजापाठ, पंथ के तरीके करीब-करीब सामान थे। विदेशी संपर्क के बाद यहां की संस्कृति बदलने लगी।
 
क्या थी अखंड भारत की स्थिति
वर्ष1800 से पहले दुनिया के देशों की सूची में वर्तमान भारत के चारों ओर जो आज देश माने जाते हैं उस समय ये देश थे ही नहीं। यहां राजाओं का शासन था। मान्यताएं व परंपराएं बाकी भारत जैसी ही हैं। खान-पान, भाषा-बोली, वेशभूषा, संगीत-नृत्य, पूजापाठ, पंथ के तरीके करीब-करीब सामान थे। विदेशी संपर्क के बाद यहां की संस्कृति बदलने लगी।
 
2500 सालों के इतिहास में सिर्फ हिंदुस्तान पर हुए हमले
पिछले 2500 वर्ष में जो भी आक्रमण हुए (यूनानी, यवन, हूण, शक, कुषाण, र्तगाली, फेंच, डच, व अंग्रेज आदि) इन सभी का इतिहास में जिक्र है। किसी ने भी अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण का उल्लेख नहीं किया है।
 
रूस और ब्रिटिश शासकों ने बनाया अफगानिस्तान
रूसी व ब्रिटिश शासकों (भारत) के बीच गंडामक संधि के बाद अफगानिस्तान नाम से एक बफर स्टेट अर्थात् राजनीतिक देश बनाया गया। इस तरह यह भारत से अलग हो गया। यह भी बता दें कि अफगानिस्तान शैव व प्रकृति पूजक मत से बौद्ध मतावलंबी और फिर इस्लाम के संपर्क में आया। बादशाह शाहजहां, शेरशाह सूरी व महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में उनके राज्य में कंधार (गंधार) का स्पष्ट वर्णन है।
 1904 में दिया आजाद रेजीडेंट का दर्जा
मध्य हिमालय के 46 से अधिक छोटे-बडे राज्यों को संगठित कर पृथ्वी नारायण शाह नेपाल नाम से एक राज्य बना चुके थे। 1904 में अंग्रेजों ने पहाड़ी राजाओं से समझौता कर नेपाल को एक आजाद देश का दर्जा प्रदान कर दिया। इस प्रकार से नेपाल भारत से अलग हो गया। नेपाल 1947 में अंग्रेजों से मुक्त हुआ।
 
अंग्रेजों की चाल से अलग हुआ भूटान
1906 के बाद अंग्रेजों ने भारत के इस हिस्से को भी अलग कर दिया। भूटान के रूप में फिर एक नए देश का निर्माण हो गया।
 
चीन ने किया कब्जा
1914 में तिब्बत को केवल एक पार्टी मानते हुए चीन, भारत की ब्रिटिश सरकार के बीच एक समझौता हुआ। भारत और चीन के बीच तिब्बत को एक बफर स्टेट के रूप में मान्यता देते हुए हिमालय को विभाजित करने के लिए मैकमोहन रेखा निर्माण करने का फैसला किया।
हिमालय को बांटने का षड्यंत्र रचा गया। चीन की साम्रज्यवादी नीतियों की वजह से तिब्बत बफर स्टेट बनने के बाद चीन के कब्जे में चला गया।
 अंग्रेजों ने अपने लिए बनाया रास्ता
अंग्रेजों ने नौसैनिक बेड़ा बनाने और समर्थक राज्य स्थापित करने के मकसद से श्रीलंका व और फिर म्यांमार को राजनीतिक देश की मान्यता दी। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से दोनों अखंड भारत का हिस्सा थे। 
 दो देश से हुए तीन
भारत में ब्रिटिश राज के अंत के साथ ही 1947 में भारत-पाक का बंटवारा हुआ। इसकी भी पटकथा अंग्रेजों ने पहले ही लिख दी थी। जबकि, 16 दिसंबर 1971 को भारत के सहयोग से बांग्लादेश के रूप में पाकिस्तान का एक हिस्सा स्वतंत्र देश बना।

ब्रिटेन और अमेरिका अंग्रेजी में काफी अंतर है.

ब्रिटेन और अमेरिका दोनों देशों की भाषा समान है. दोनों ही देशों में अंग्रेजी बोली जाती है.लेकिन दोनों की अंग्रेजी में काफी अंतर है. भारत में ब्रिटिश अंग्रेजी ज्यादा लोकप्रिय है लेकिन अमेरिकन अंग्रेजी का भी अच्छा खासा प्रभाव दिख रहा है. जानिए आप कौन सी अंग्रेजी के करीब हैं...


क्रम संख्या
ब्रिटिश अंग्रेजी
अमेरिकन अंग्रेजी
1.
Aluminium
Aluminum
2.
Biscuits
Cookies
3.
Garden
Yard
4.
Flat
Apartment
5.
Flu
Grippe
6.
Holiday
Vacation
7.
Jam
Jelly
8.
Spare Time
Free Time
9.
Toilet
Bathroom
10.
Vacuum cleaner
Hoover
11.
Shares
Stocks
12.
Street Light
Lamp Post
13.
Lift
Elevator
14.
Petrol
Gas
15.
Rubbish
Garbage
16.
Main Road
Highway
17.
School Report
Report Card
18.
Torch
Flash Light
19.
Hand Bag
Purse
20.
Chips
French Fries
21.
Office
Bureau
22.
Engaged
Busy
23.
Jumper
Sweater
24.
Washing Powder
Detergent
25.
Pavement
Sidewalk

Saturday, 26 December 2015

मदन मोहन मालवीय


मालवीयजी का जन्म प्रयाग में, जिसे स्वतन्त्र भारत में इलाहाबाद कहा जाता है, 25 दिसम्बर 1861 को पं० ब्रजनाथ व मूनादेवी के यहाँ हुआ था। वे अपने माता-पिता से उत्पन्न कुल सात भाई बहनों में पाँचवें पुत्र थे। मध्य भारत के मालवा प्रान्त से प्रयाग आ बसे उनके पूर्वज मालवीय कहलाते थे। आगे चलकर यही जातिसूचक नाम उन्होंने भी अपना लिया। उनके पिता पण्डित ब्रजनाथजी संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे। वे श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर अपनी आजीविका अर्जित करते थे।
पाँच वर्ष की आयु में उन्हें उनके माँ-बाप ने संस्कृत भाषा में प्रारम्भिक शिक्षा लेने हेतु पण्डित हरदेव धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला में भर्ती करा दिया जहाँ से उन्होंने प्राइमरी परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके पश्चात वे एक अन्य विद्यालय में भेज दिये गये जिसे प्रयाग की विद्यावर्धिनी सभा संचालित करती थी। यहाँ से शिक्षा पूर्ण कर वे इलाहाबाद के जिला स्कूल पढने गये। यहीं उन्होंने मकरंद के उपनाम से कवितायें लिखनी प्रारम्भ कीं। उनकी कवितायें पत्र-पत्रिकाओं में खूब छपती थीं। लोगबाग उन्हें चाव से पढते थे। 1879 में उन्होंने म्योर सेण्ट्रल कॉलेज से, जो आजकल इलाहाबाद विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है, मैट्रीकुलेशन (दसवीं की परीक्षा) उत्तीर्ण की। हैरिसन स्कूल के प्रिंसपल ने उन्हें छात्रवृत्ति देकर कलकत्ता विश्वविद्यालय भेजा जहाँ से उन्होंने 1884 ई० में बी०ए० की उपाधि प्राप्त की।


पहले ऐसे शख्स जिन्हें मिली महामना की उपाधि
1. मालवीय बचपन से अपने पिता की तरह भागवत की कहानी कहने वाले यानी कथावाचक बनना चाहते थे मगर गरीबी के कारण उन्हें 1884 में सरकारी विद्यालय में शिक्षक की नौकरी करनी पड़ी.
2. पूरे भारत में ये अकेले ऐसे शख्स हैं जिन्हें महामना की उपाधि दी गई.
3. 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 144 धारा का उल्लंघन करने के कारण गिरफ्तार कर लिया.
4. डॉ. राधा कृष्णन ने मालवीय के संघर्ष और परिश्रम के कारण उन्हें कर्मयोगी कहा था.
5. 1898 में सर एंटोनी मैकडोनेल के सम्मुख हिंदी भाषा की प्रमुखता को बताते हुए, कचहरियों में इस भाषा को प्रवेश दिलाया.
6. मदन मोहन मालवीय के बारे में जब भी बात की जाती है तो बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) का जिक्र जरूर किया जाता है. इन्होंने इसकी स्थापना 1916 में की.
7. मालवीय ने 1907 में 'अभ्युदय' हिंदी साप्ताहिक की शुरुआत की.
8. वे चार बार 1909, 1918, 1930, 1932 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे.
9. 1924 से 1946 तक वे हिंदुस्तान टाइम्स के चेयरमैन रहे.
10. मालवीय ने रथयात्रा के मौके पर कलाराम मंदिर में दलितों को प्रवेश दिलाया था और गोदावरी नदी में हिंदू मंत्र का जाप करते हुए स्नान के लिए भी प्रेरित किया.
11. 'द लीडर' अंग्रेजी अखबार की 1909 में स्थापना की. यह अखबार इलाहाबाद से प्रकाशित होता था.

12. उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़कर 'कांग्रेस नेशनलिस्ट पार्टी' का निर्माण किया

Wednesday, 23 December 2015

जब एक नागा साधु से ऐसे हार गया सिकंदर द ग्रेट

लेक्जेंडर जब भारत आया तो वह कई इलाकों को जीतने और साम्राज्य को विस्तार देने के बाद भी संतुष्ट नहीं था। एलेक्जेंड को ही सिकंदर के नाम से भी जाना जाता है। उसे एक ज्ञानी व्यक्ति की तलाश थी। वह चाहता था कि वह भारत से किसी ज्ञानी व्यक्ति को अपने साथ ले जाए। कुछ लोगों के बताने पर वह एक संत की खोज में अपनी फौज के साथ एक नगर में पहुंचा। वहां उसने देखा कि एक (नागा साधु) संत बिना कपड़ों के पेड़ के नीचे ध्यान कर रहा है। एलेक्जेंडर और उसकी फौज ने संत के ध्यान से बाहर आने तक इंतजार किया। जैसे ही संत का ध्यान टूटा, पूरी फौज एक स्वर में नारे लगाने लगी- 'एलेक्जेंडर द ग्रेट! एलेक्जेंडर द ग्रेट!’ संत उन्हें देखकर मुस्कराया।
एलेक्जेंडर ने संत को बताया कि वह उन्हें अपने साथ अपने देश लेकर जाना चाहता है। संत ने बेहद धीमे स्वर में जवाब दिया, 'तुम्हारे पास ऐसा कुछ नहीं है, जो तुम मुझे दे सको। जो मेरे पास न हो। मैं जहां-जैसा हूं, खुश हूं। मुझे यहीं रहना है। मैं तुम्हारे साथ नहीं आ रहा।’ एलेक्जेंडर की फौज को इस बात से गुस्सा आ गया। उनके राजा की इच्छा को एक मामूली संत ने खारिज जो कर दिया था।
एलेक्जेंडर ने अपनी फौज को शांत किया और संत से बोला 'मुझे जवाब में 'नहीं’ सुनने की आदत नहीं है।’ उसने जोर देकर कहा- 'आपको आना ही होगा।’
 
जब सिकंदर ने कहा कि आपको आना ही होगा तो संत ने जवाब दिया, 'तुम मेरी जिंदगी के फैसले नहीं ले सकते। मैंने फैसला किया है कि मैं यहीं रहूंगा तो मैं यहीं रहूंगा। तुम जा सकते हो।’
इतना सुनकर एलेक्जेंडर गुस्से से आगबबूला हो गया। उसने अपनी तलवार निकाली। संत की गर्दन पर रखकर बोला- 'अब मुझे बताओ, जिंदगी चाहिए या मौत!’
संत अभी भी अपनी बात पर अड़े हुए थे। उन्होंने एलेक्जेंडर से कहा, 'मैं नहीं आ रहा। हालांकि, यदि तुम मुझे मार दो तो अपने आपको फिर कभी एलेक्जेंडर द ग्रेट मत कहना। क्योंकि तुम्हारे में महान जैसी कोई बात नहीं है। तुम तो मेरे गुलाम के गुलाम हो।’
एलेक्जेंडर को यह सुनकर झटका लगा। यहां एक ऐसा व्यक्ति है जिसने पूरी दुनिया को जीता और एक नंगा व्यक्ति उसे अपने दास का दास बता रहा है। एलेक्जेंडर ने पूछा, 'तुम कहना क्या चाहते हो?’
 
संत ने जवाब दिया, 'मैं जब तक नहीं चाहता, तब तक मुझे गुस्सा नहीं आता। गुस्सा मेरा गुलाम है। जबकि गुस्से को जब लगता है, वह तुम पर हावी हो जाता है। तुम अपने गुस्से के गुलाम हो। भले ही तुमने पूरी दुनिया को जीता हो, लेकिन रहोगे तो मेरे दास के दास।’
यह सुनकर एलेक्जेंडर दंग रह गया। उसने श्रद्धा के साथ संत के आगे सिर झुकाया। अपनी फौज के साथ वापस लौट गया।
इस तरह एक नागा साधु ने सिकंदर द ग्रेट को हरा दिया।
हममें से कितने ही लोग गुस्से के गुलाम हैं? गुस्से की वजह से हमने कितने रिश्ते और अवसर गंवाएं हैं? गुस्से की वजह से हमने अपने आपको कितनी बार परेशानी में डाला है? कितनी बार चिंता में डाला है? हमारे कितने ही करीबियों ने हमारे गुस्से की वजह से शांतिपूर्वक बिताए जा सकने वाले पल गंवाएं हैं?
लोगों को इस बात का बहुत गर्व होता है कि उन्हें कितना गुस्सा आता है और उनके गुस्से से लोग कितना डरते हैं। गुस्से से डराने में गर्व महसूस करने जैसा कुछ नहीं है। जो लोग हमारे गुस्से का शिकार होते हैं, वे हमसे डरने लगते हैं। दूर रहने लगते हैं। डर और प्यार कभी एक साथ नहीं रहता। जब लोग हमसे दूर होते हैं तो हम सिर्फ उन्हें ही नहीं बल्कि उनके प्यार को भी खोते हैं। भले ही दूसरों पर गुस्सा करके हमारे ईगो को तात्कालिक जीत मिलती हो, लेकिन हकीकत तो यह है कि इसमें हमारी हार सबसे बड़ी होती है।
इसीलिए गुस्से को काबू करना चाहिए।